
मन आज उदास है.....
आसमान की ओर देखकर कह रहा है....
सावन तुम कब आओगे..?
तुम्हारे इतंजार में तड़प रही है धरती
सूख गए हैं बगीचे
हरियाली को तरस रही आँखे
नदियों तालाबों पोखरों को जरूरत है तुम्हारी
निभाओं अपनी सच्ची दोस्ती, करो इनकी काया शीतल
आँखे सूझ गयी तुम्हारें इतंजार में
आस लगाएँ है सभी तुम्हारे झलक के लिए
लो मत इतनी परीक्षा अपनों की
इतनी भी क्या नाराजगी हमसे
तुम आना नहीं चाहते हमारे पास।
तुम्हारें मोतियों के एहसास याद आ रहे है
उन यादों में सिमटी है जिंदगी के प्यारे लम्हें
उन लम्हों को फिर से जीना चाहता है ये मन
लौटना चाहता है, उस पल में
जहाँ होते थे सिर्फ मैं और तुम
सिमटें रहते थे एक दूसरे के संग
मन उन पलों को याद करके बैचेन हो उठा है
तुम्हारी दूरी अब सही नहीं जाती
आ भी जाओ सावन
इतनी परीक्षा न लो अपने प्यार का...।
"musladhaar barasta paani...zara na rukta leta dam..." it seems these line are just part of imagination hope to see them true in few days..
ReplyDeleteThanks Dear
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