Monday, May 17, 2010

खत्म होते बाघ चिंता का विषय


अब वह दिन दूर नहीं जब बंगाल- प्रसिद्ध टाइगर के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे और अगर दर्शन होंगे तो भी वह केवल तस्वीरों में। जिस तेजी से देश में बाघों की संख्या घट रही है, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब बाघों का नामोनिशान ही मिट जाएगा।
पूरी दूनिया में मानवीय गतिविधियाँ व्यापक स्तर पर पर्यावरण का विनाश कर रही हैं जिससे जैव-विविधता उच्च दर से नष्ट हो रही है। इसी का परिणाम है कि बाघ अत्यत तेजी से नष्ट हो रहे हैं। चीन में बाघों और चीतों की तस्करी से भारत के बाघों पर खतरा मंडरा रहा है। पहले जहां देश में बाघों की संख्या 40 हजार थी वही आज इनकी संख्या 1411 ही बची हैं।
वन जीवों का निवास स्थान होता है पर आज निवास स्थान, सड़कों और रेल-पटरियों के निर्माण के लिए तेजी से वनों को काटा जा रहा है जिसके कारण बाघों की बची संख्या पर खतरा मंडराने लगा है। लोभ के प्रभाव में आकर मानव न केवल बाघों का शिकार कर रहा है बल्कि इनके चमड़ों और दांतों का व्यापार भी कर रहा है। सौंदर्य की सामग्री, औषधि और घरों की सजावटी समानों के लिए बाघों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है। नक्सलवाद की जिस समस्या को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं, वह न केवल मानव को क्षति पंहुचा रहा है बल्कि उसका दुष्प्रभाव वन्यप्राणियों को भी भुगतना पड़ रहा हैं। नक्सली इलाकों से सटे अभ्यारण्यों में जितने भी जानवरों की हत्याएं होती हैं, माना जाता है कि ये नक्सलियों की करतूत होती है। नक्सली धन उगाही के लिए जानवरों की हत्याएं करते हैं। शिकारियों के निशाने पर इतने बाघ चढ़े कि इनकी संख्या खतरे के घेरे में आ गयी है। प्रशासन ने अपनी चूक स्वीकार करने के बजाय जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों को यह कहते हुए खदेड़ दिया कि इन्हीं से बाघों को खतरा है। आदिवासियों के जंगल से निकल जाने के बाद भी इनकी संख्या लगातार घटती रही।
देश को स्वंतत्रता मिलने के लगभग 25 वर्ष बाद सन् 1972 में हमारे देश में वन्यजीव संरक्षण कानून बन गया था पर आज तक जीवों की की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं जा रहे हैं। बाघों की सुरक्षा के लिए कई तरह के प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं पर जब तक लोगों में बाघों के प्रति जागरूकता नही फैलायी जाती तक स्थिति में सुधार लाना कठिन है।
बाघ भारत का राष्टीय पशु है। इसलिए देश के हर नागरिक को ”जिओ और जीने दो” को समझने की आवश्यकता है तभी बाघों की बची हुई संख्या को सुरक्षित रखा जा सकता है। देश के हर नागरिक को बाघों की रक्षा के लिए पहल करनी चाहिए। कहीं इतनी देर न हो जाए कि भारत के राष्ट्रीय पशु का आस्तिव ही मिट जाए ।

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