Monday, March 7, 2011

महिला दिवस


पैरों में है बेड़ियाँ........
आँखों में है लाखों सपनें
सपनों को पूरा करने की चाहत है
पर रास्तें में बिखरे हैं काँटे

काँटो पर चलनें को तैयार हैं हम
लेकिन काँटो के साथ बिखरे हैं अँगारे
कैसे निकले इस रास्ते से हम...
पँहुचे कैसे अपनी मंजिल तक
अकेला चलना मुश्किल है इस राह पर....
होना होगा साथ हमें ....
आओ बहन, आओ सखी
मिलकर हाथ बढ़ाते हैं....
इस महिला दिवस के अवसर पर
अपनी शक्ति दुनिया को दिखाते हैं।

Thursday, October 14, 2010

क्या हूँ मैं…….



क्या हूँ मैं ..........
मैं भी नहीं जानती
हूँ मैं मोम की गुड़िया
पल में पिघल जाती हूँ...
कभी लगता है....
चट्टान सी हूँ मैं कठोर....
जिसे कोई हिला नहीं सकता..
आखिर क्या हूँ मैं....
मैं भी नही जानती..

दुनिया से लड़ने की ताकत रखती हूँ मैं
कभी दुनिया की कुछ बातों से ही डर जाती हूँ...
चाँदनी की तरह हूँ मैं शीतल या....
सूरज की किरणों की तरह तेज
आखिर क्या हूँ मैं....
मैं भी नही जानती..

Friday, May 21, 2010

आ भी जाओ सावन




मन आज उदास है.....

आसमान की ओर देखकर कह रहा है....

सावन तुम कब आओगे..?

तुम्हारे इतंजार में तड़प रही है धरती

सूख गए हैं बगीचे

हरियाली को तरस रही आँखे

नदियों तालाबों पोखरों को जरूरत है तुम्हारी

निभाओं अपनी सच्ची दोस्ती, करो इनकी काया शीतल

आँखे सूझ गयी तुम्हारें इतंजार में

आस लगाएँ है सभी तुम्हारे झलक के लिए

लो मत इतनी परीक्षा अपनों की

इतनी भी क्या नाराजगी हमसे

तुम आना नहीं चाहते हमारे पास।

तुम्हारें मोतियों के एहसास याद आ रहे है

उन यादों में सिमटी है जिंदगी के प्यारे लम्हें

उन लम्हों को फिर से जीना चाहता है ये मन

लौटना चाहता है, उस पल में

जहाँ होते थे सिर्फ मैं और तुम

सिमटें रहते थे एक दूसरे के संग

मन उन पलों को याद करके बैचेन हो उठा है

तुम्हारी दूरी अब सही नहीं जाती

आ भी जाओ सावन

इतनी परीक्षा न लो अपने प्यार का...।

Monday, May 17, 2010

खत्म होते बाघ चिंता का विषय


अब वह दिन दूर नहीं जब बंगाल- प्रसिद्ध टाइगर के दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे और अगर दर्शन होंगे तो भी वह केवल तस्वीरों में। जिस तेजी से देश में बाघों की संख्या घट रही है, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब बाघों का नामोनिशान ही मिट जाएगा।
पूरी दूनिया में मानवीय गतिविधियाँ व्यापक स्तर पर पर्यावरण का विनाश कर रही हैं जिससे जैव-विविधता उच्च दर से नष्ट हो रही है। इसी का परिणाम है कि बाघ अत्यत तेजी से नष्ट हो रहे हैं। चीन में बाघों और चीतों की तस्करी से भारत के बाघों पर खतरा मंडरा रहा है। पहले जहां देश में बाघों की संख्या 40 हजार थी वही आज इनकी संख्या 1411 ही बची हैं।
वन जीवों का निवास स्थान होता है पर आज निवास स्थान, सड़कों और रेल-पटरियों के निर्माण के लिए तेजी से वनों को काटा जा रहा है जिसके कारण बाघों की बची संख्या पर खतरा मंडराने लगा है। लोभ के प्रभाव में आकर मानव न केवल बाघों का शिकार कर रहा है बल्कि इनके चमड़ों और दांतों का व्यापार भी कर रहा है। सौंदर्य की सामग्री, औषधि और घरों की सजावटी समानों के लिए बाघों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है। नक्सलवाद की जिस समस्या को प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं, वह न केवल मानव को क्षति पंहुचा रहा है बल्कि उसका दुष्प्रभाव वन्यप्राणियों को भी भुगतना पड़ रहा हैं। नक्सली इलाकों से सटे अभ्यारण्यों में जितने भी जानवरों की हत्याएं होती हैं, माना जाता है कि ये नक्सलियों की करतूत होती है। नक्सली धन उगाही के लिए जानवरों की हत्याएं करते हैं। शिकारियों के निशाने पर इतने बाघ चढ़े कि इनकी संख्या खतरे के घेरे में आ गयी है। प्रशासन ने अपनी चूक स्वीकार करने के बजाय जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों को यह कहते हुए खदेड़ दिया कि इन्हीं से बाघों को खतरा है। आदिवासियों के जंगल से निकल जाने के बाद भी इनकी संख्या लगातार घटती रही।
देश को स्वंतत्रता मिलने के लगभग 25 वर्ष बाद सन् 1972 में हमारे देश में वन्यजीव संरक्षण कानून बन गया था पर आज तक जीवों की की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाएं जा रहे हैं। बाघों की सुरक्षा के लिए कई तरह के प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं पर जब तक लोगों में बाघों के प्रति जागरूकता नही फैलायी जाती तक स्थिति में सुधार लाना कठिन है।
बाघ भारत का राष्टीय पशु है। इसलिए देश के हर नागरिक को ”जिओ और जीने दो” को समझने की आवश्यकता है तभी बाघों की बची हुई संख्या को सुरक्षित रखा जा सकता है। देश के हर नागरिक को बाघों की रक्षा के लिए पहल करनी चाहिए। कहीं इतनी देर न हो जाए कि भारत के राष्ट्रीय पशु का आस्तिव ही मिट जाए ।

Sunday, May 9, 2010

तेरे संग

नन्ही सी आयी थी मैं इस दुनिया में
माँ के बाद तुने ही प्यार किया मुझें….

खेलती थी तेरे ही संग,
लड़ती थी तेरे ही संग,
रुठती थी तुझसे
तू आती थी मनाने मुझे
लाती थी चॉकलेट अपने संग

देखते - देखते बड़े हो गए हम
समय ले आया उस मोड़ पर हमें
जिस मोड़ से दूर हो गए हम

तू चली गयी किसी और के संग
मैं रह गयी उसी मोड़ पर

दूर हो गए एक दूसरे से हम
पर प्यार न हो सका कम
क्योंकि एक ही रंग हैं हम....

Saturday, May 8, 2010

जनसंचार

जनसंचार के बच्चे हम
थोड़े हैं नादान, थोड़े है शैतान
पर बगिया के माली हैं बड़े बुद्धिमान।

लक्ष्य की ओर बढ़ने की राह दिखाते
कराते मीडिया से पहचान
पढ़ाते- पढ़ाते इतना हँसाते हमें
कि हो जाती थकान तमाम

दूर – दूर से आए हम बच्चें
करेंगे गौरवान्वित अपने शिक्षक का नाम।

क्या रिश्ता है तुझसे मेरा

क्या रिश्ता है तुझसे मेरा....
क्यों दिल सोचता है, हर पल तेरे लिए
क्यों अच्छा लगता है तुझसे बाते करना
क्यों चाहती हूँ तेरे साथ चलना

क्यों झगड़ती हूँ मैं तुझसे,
क्यों रूठती हूँ मैं तुझसे,
क्यों एहसास होता है मनाने आओगे तुम....
क्यों लगता है रूह हो तुम मेरी....

पर जब खामोशी में बैठती हूँ..
तो यही सोचती हूँ....
रिश्तो की इस भीड़ में....
आखिर क्या रिश्ता है तुझसे मेरा....