
हमारे नेताओं के शब्दों में बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है। बच्चे हमारे देश के भविष्य हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले भारत की तस्वीर किसी को भी डरा सकती है। हर साल चाचा नेहरू के बच्चों को, “नई सुरक्षित दुनिया, नया सपना’’ देने का वादा किया जाता है लेकिन हकीकत में बचपन पर तेजी से खतरा मंडरा रहा है।
वर्षों से बाल श्रम हमारे समाज में एक बुराई के रूप में कायम रहा है। देश में बड़ी तादाद में बाल मजदूर हैं। कोमल बचपन को श्रम की आग में झोंक देना किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक बात है। बाल श्रमिक एक अदृश्य गुलाम की तरह जीवन जीते हैं लेकिन अपने खिलाफ होनेवाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।
रोडवेज, बस-स्टैण्ड, रेलवे, सब्जी-मण्डी सिनेमा हॉल आदि नगरों-महानगरों सार्वजनिक स्थानों के आस-पास कूड़े-कचड़े चुनते मिल जाएंगे। ये बच्चे नहीं जानते कि स्कूल किस चिड़िया का नाम है। इन्हें बचपन से ही श्रम की ओर धकेल दिया जाता है। 1 अप्रैल को शिक्षा बिल पास हुआ जिसमें कहा गया है 6 से 14 वर्ष तक सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाएगी। बिल पास होने के बावजूद भी ये बच्चे शिक्षा से वंचित हैं । पटाखे उघोग, बीड़ी उघोग, आभूषण उघोग में बच्चे बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो गेहूँ, धान और गन्ने की बुवाई-कटाई के समय स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 20-30 प्रतिशत रह जाती है। खेतो में मजदूरी करने के लिए अभिभावक ही उन्हें अपने साथ ले जाते हैँ।
बाल-श्रम इन बच्चों से इनका बचपन छीन रहा है। बैग टांग कर स्कूल जाना, खेलना और अपनी पसंदीदा चीजें खाना, दोस्तों के साथ मस्ती करना इनकी कल्पना में ही रह जाता है। बाल-श्रम के कारण बच्चों में समय से पूर्व ही ऐसी कई बीमारियाँ हो जाती हैं जिन्हें सारी उम्र उन्हें सहना पड़ता है। कूढ़े के ढेर से इन्हें कई संक्रामक रोग हो जाते है। वे कब बचपन से जवानी की दहलीज पर पहुँच जाते है उन्हें पता ही नही चलता। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि इन बच्चों को श्रम कार्यों में इनके अभिभावक ही धकेलते हैं। काम में जरा सी भी देर हुई कि इन्हें अपने मालिकों से माँ , बहन से संबंध जोड़ने वाली गालियों के साथ पुकारा जाता है। इस स्थिति में इनका गुस्सा होना लाजमी है, जिसके चलते ये धीरे-धीरे नशे की ओर झुकने लगते है ओर जानलेवा नशीली पदार्थों का सेवन करने लगते हैं।
पिछले साल महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गए हलफनामें की सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा था कि 2010 तक राज्य से बाल मजदूरी पूरी तरह खत्म कर दी जाएगी। परन्तु, आज बाल-श्रम दिन प्रति बढ़ता जा रहा है और शिक्षा का अधिकार बिल को इससे जोड़ने की कोई पहल नहीं की जा रही है। अधिकतर बाल मजदूर बिहार, झारखण्ड, छतीगढ़ से बड़े शहरों में आते हैं जहाँ इनका जबरदस्त शोषण होता है। यह सब सरकार और प्रशासन के नाक तले होता है लेकिन उदासीन तंत्र आंख मूंदे यह देखता रहता है। इन्हे आए दिन प्रताड़ित किया जाता है पर गरीबी के कारण ये आवाज नहीं उठाते और प्रताड़ित होते रहते हैं।
बाल श्रमिकों की रक्षा के लिए श्रम कानून बनाया गया है पर इसे लागू नहीं किया गया है यह केवल कागजों पर ही तैयार किया गया है। आज समाज को बाल अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि बच्चों का काम मजदूरी करना नहीं, बल्कि पढ़ाई है। अगर वाकई समाज भविष्य के प्रति संजीदा है तो सामाजिक माहौल को सुधारना ही होगा।
अन्नी अंकिता